सन्त एकनाथ जी जिन्हें आमतौर पर नाथ के नाम से जाना जाता है (जन्म: पैठन, 1533 ई.; – 1599 ई.) महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के संत थे। संत भानुदास एकनाथ के परदादा थे। 1533 में पैठण के एक सम्मानित देशस्थ ब्राह्मण परिवार में जन्मे सन्त एकनाथ जी के माता-पिता का साया बचपन में ही उनके सिर से उठ गया। उस मासूम बच्चे को उनके दादा चक्रपाणि ने पाला। चक्रपाणि स्वयं विठ्ठल भक्त और सन्त भानुदास के पुत्र थे। इस विरासत ने सन्त एकनाथ जी को भक्ति का संस्कार बचपन से ही दिया।
सन्त एकनाथ जी का बाल मन हमेशा जिज्ञासु था। जब अन्य बच्चे खेलते, वह ज्ञान की खोज में डूबा रहता। छठे वर्ष में उपनयन संस्कार के बाद, उन्हें एक विद्वान पंडित के पास भेजा गया। वहाँ उन्होंने रामायण, महाभारत, ज्ञानेश्वरी और अमृतानुभव का अध्ययन किया। ईश्वर-भक्ति का स्वाभाविक आकर्षण उन्हें बचपन से ही था। गुरु की खोज में वे दौलताबाद पहुंचे और जनार्दन स्वामी के चरणों में समर्पित हो गए।
सन्त एकनाथ जी ने केवल लिखने के लिए नहीं लिखा; उनकी हर रचना समाज को दिशा देने वाली थी। उनकी ‘सन्त एकनाथी भागवत’ में 18,810 ओवियाँ हैं। इसके अलावा, उन्होंने भावार्थ रामायण की रचना की, जिसमें लगभग 40,000 ओवियाँ हैं। रुक्मिणी स्वयंवर और दत्त आरती भी उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। परंतु उनकी सबसे बड़ी पहचान उनके कर्मों से हुई। सन्त एकनाथ जी जाति, धर्म और पंथ की बेड़ियों को तोड़ने वाले सन्त थे। उनके लिए हर प्राणी समान था।
सन्त एकनाथ जी: भक्ति, करुणा और समानता का संदेश
सन्त एकनाथ जी का जीवन भक्ति, करुणा और मानवता का जीवंत उदाहरण है। उनकी रचनाएँ और शिक्षाएँ न केवल उनकी आध्यात्मिक गहराई को प्रकट करती हैं, बल्कि समाज में समानता और शांति का संदेश भी देती हैं। उनके ग्रंथ सन्त एकनाथी भागवत ने भक्ति और परमार्थ का सरल मार्ग दिखाकर लाखों लोगों के जीवन को प्रेरित किया।
सन्त एकनाथी भागवत: एक अद्भुत रचना:
सन्त एकनाथी भागवत को वारकरी पंथ की आधारशिला माना जाता है। यह ग्रंथ संस्कृत भागवत पुराण के एकादश स्कंध पर आधारित है और मराठी में ओवीबद्ध टीका के रूप में लिखा गया है। इसे 1570 से 1573 के बीच रचा गया। यह ग्रंथ भक्ति के माध्यम से परमात्मा को पाने का मार्ग दिखाता है और सभी जीवों में ईश्वर का दर्शन करने की प्रेरणा देता है।
सन्त एकनाथ जी के जीवन का सबसे प्रेरणादायक क्षण तब आया जब काशी के विद्वानों ने उनके मराठी ग्रंथ को चुनौती दी। उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर बैठकर संपूर्ण ग्रंथ की रचना की और विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत किया। यह रचना इतनी प्रभावशाली थी कि विद्वानों ने इसे न केवल स्वीकार किया, बल्कि काशी की गलियों में इसकी शोभायात्रा भी निकाली।
सन्त ज्ञानेश्वर जी के लगभग 250 वर्षों बाद सन्त एकनाथ जी का जन्म हुआ। उन्होंने ज्ञानेश्वर जी द्वारा शुरू की गई सामाजिक और आध्यात्मिक परंपराओं को आगे बढ़ाया। उन्होंने ज्ञानेश्वरी की प्रतिलिपि को शुद्ध कर इसे आम लोगों तक पहुँचाने का कार्य किया। यह केवल एक साहित्यिक कार्य नहीं था, बल्कि एक आध्यात्मिक धरोहर को पुनर्जीवित करने का प्रयास था।
सन्त एकनाथ जी ने अपने भजनों, गवळणी, भारूड और अन्य रचनाओं के माध्यम से समाज में रंजन और प्रबोधन का अनूठा संतुलन स्थापित किया। उनका उद्देश्य केवल भक्ति का प्रचार करना नहीं था, बल्कि समाज के हर व्यक्ति को यह समझाना था कि ईश्वर हर जीव में विद्यमान है और सबको समान दृष्टि से देखने की आवश्यकता है।
सन्त एकनाथ जी का संघर्षमय बचपन:
सन्त एकनाथ जी का जन्म 1533 में महाराष्ट्र के पैठण में एक सम्मानित देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ। दुर्भाग्य से, उनके माता-पिता का देहांत उनके बचपन में ही हो गया। उनके दादा चक्रपाणि ने उन्हें पाला, जो स्वयं विठ्ठल भक्त और सन्त भानुदास के पुत्र थे। यह भक्ति परंपरा सन्त एकनाथ जी के व्यक्तित्व में रच-बस गई। बचपन से ही सन्त एकनाथ जी का मन ज्ञान और भक्ति की ओर झुका हुआ था। उन्हें अपने दादा से गीता, रामायण और महाभारत का ज्ञान मिला। गुरु की खोज में उन्होंने दौलताबाद की यात्रा की और जनार्दन स्वामी के चरणों में समर्पण किया। यह उनके जीवन का वह क्षण था जिसने उनकी आध्यात्मिक यात्रा को दिशा दी।
सन्त एकनाथी भागवत: भक्ति का अनुपम सागर:
भारतीय सन्त परंपरा में सन्त एकनाथ का नाम बड़े ही आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। उनकी लेखनी ने न केवल मराठी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि जनसामान्य को भक्ति और नैतिकता का ऐसा अनमोल उपहार दिया, जो युगों-युगों तक मानवता का मार्गदर्शन करता रहेगा। इसी श्रृंखला में उनकी अमर कृति ‘सन्त एकनाथी भागवत’ एक ऐसी रचना है, जो भक्ति रस का अद्भुत स्रोत है।
भागवत का अनुवाद या आत्मा का समर्पण?
सन्त एकनाथी भागवत केवल भागवत पुराण का अनुवाद भर नहीं है। यह उनके हृदय की गहराइयों से निकली भक्ति का रस है, जो उन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए उपलब्ध कराया। भागवत पुराण का 11वां स्कंध, जिसमें श्रीकृष्ण की उधारणा और भक्ति का अद्भुत वर्णन है, एकनाथ जी ने इसे मराठी भाषा में ढालकर जनसामान्य तक पहुंचाया। उन्होंने इसे सिर्फ शाब्दिक अनुवाद तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसमें अपने अनुभव, ज्ञान और समाज के प्रति प्रेम को भी जोड़ा।
सरल भाषा में गूढ़ तत्व:
सन्त एकनाथ ने इस ग्रंथ को मराठी की सरल, सजीव और संवादात्मक शैली में लिखा। उनकी भाषा में वह मिठास है, जो सीधे हृदय को छूती है। यह कृति विशेष रूप से उन लोगों के लिए लिखी गई थी, जो संस्कृत नहीं समझ पाते थे, लेकिन आध्यात्मिकता के अमृत से वंचित नहीं रहना चाहते थे।
भक्ति और सामाजिक चेतना का संगम:
सन्त एकनाथी भागवत केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है; यह समाज सुधार का संदेश भी है। उस समय के समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जात-पात और धार्मिक पाखंड को चुनौती देते हुए, एकनाथ जी ने यह स्पष्ट किया कि भगवान की भक्ति सबके लिए समान है।
वे कहते हैं:
“भगवान को केवल हृदय की शुद्धता चाहिए। जाति, धर्म या किसी बाहरी कर्मकांड का महत्व उसके आगे नगण्य है।” इस ग्रंथ के माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग का हो, भक्ति के माध्यम से ईश्वर से जुड़ सकता है।
भक्ति का अमृत:
सन्त एकनाथी भागवत में एकनाथ जी ने भक्ति को जीवन का सर्वोच्च साधन बताया है। उन्होंने भक्ति को केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे जीवन जीने की कला और हर स्थिति में भगवान को याद करने का तरीका बताया। इसमें श्रीकृष्ण की कथा के माध्यम से यह सिखाया गया है कि कैसे भगवान अपने भक्तों की हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं।
सन्त एकनाथ की करुणा और जनसेवा:
यह ग्रंथ सन्त एकनाथ की करुणा और सेवा भावना का जीवंत प्रमाण है। वे न केवल एक सन्त थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने इस ग्रंथ के माध्यम से यह सिखाया कि सच्चा धर्म वही है, जो दूसरों की सेवा करे और मानवता को ऊपर उठाए।
जीवन के लिए मार्गदर्शन:
सन्त एकनाथी भागवत केवल आध्यात्मिक प्रेरणा ही नहीं, बल्कि नैतिक और व्यावहारिक जीवन का मार्गदर्शन भी देती है। इसमें ऐसी कहानियाँ और उपदेश हैं, जो हमें सत्य, धर्म, प्रेम और करुणा के महत्व को समझाते हैं।
आज भी प्रासंगिक:
भले ही यह ग्रंथ सैकड़ों साल पहले लिखा गया हो, लेकिन इसके उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। यह हमें सिखाता है कि भक्ति केवल ईश्वर की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर प्राणी के प्रति प्रेम, दया और सम्मान का नाम है।
सन्त एकनाथी भागवत एक ऐसा खजाना है, जो कभी समाप्त नहीं होता। यह हमें सिखाता है कि भक्ति केवल एक मार्ग नहीं, बल्कि जीवन का सार है। सन्त एकनाथ ने इसे लिखकर मानवता के लिए जो योगदान दिया है, वह अमूल्य है। यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि जीवन को नैतिक और आदर्श दिशा भी देता है। जो भी इस ग्रंथ को पढ़ता है, वह न केवल भक्ति के सागर में डूब जाता है, बल्कि उसका जीवन भी ईश्वर के प्रकाश से आलोकित हो उठता है। सन्त एकनाथी भागवत को पढ़ना केवल एक ग्रंथ को पढ़ना नहीं, बल्कि एकनाथ जी के हृदय को छू लेना है।