भागवत पुराण: तृतीय स्कन्ध विवरण

१. विदुरजी एवं उनकी पत्नी सुलभा का भगवद-प्रेम

विदुरजी और उनकी पत्नी सुलभा का भगवान के प्रति गहरा प्रेम था। यह प्रेम उनकी भक्ति और श्रद्धा को दर्शाता है, जो उनके जीवन को पवित्र और उच्च बनाता है।

२. प्रेम के वशीभूत हो श्रीकृष्ण का विदुरजी के घर आगमन

श्रीकृष्ण, विदुरजी के प्रेम से आकर्षित होकर उनके घर आए। यह घटना दिखाती है कि सच्ची भक्ति और प्रेम से भगवान स्वयं भक्त के पास आते हैं।

३. दुर्योधन द्वारा विदुरजी का अपमान

दुर्योधन ने विदुरजी का अपमान किया था, जिससे विदुरजी अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने हस्तिनापुर छोड़कर तीर्थाटन पर जाने का निश्चय किया।

४. विदुरजी का तीर्थाटन

विदुरजी ने विभिन्न तीर्थों की यात्रा की और वहां पर भगवान की भक्ति और ध्यान में अपना समय व्यतीत किया।

५. उद्धव और विदुरजी की भेंट

विदुरजी और उद्धव की भेंट एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसमें दोनों ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और भक्ति पर चर्चा की।

६. उद्धवजी द्वारा श्रीकृष्ण-लीला-वर्णन

उद्धवजी ने विदुरजी को श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन किया, जिससे विदुरजी को भगवान की महिमा और उनकी लीलाओं का गहन ज्ञान प्राप्त हुआ।

७. विदुरजी का मैत्रेय ऋषि के आश्रम में आगमन

विदुरजी ने मैत्रेय ऋषि के आश्रम में जाकर उनसे सृष्टि और धर्म के गूढ़ रहस्यों के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की।

८. मांडव्य ऋषि की कथा

मांडव्य ऋषि की कथा में उनके द्वारा किए गए तप और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है।

९. विदुरजी का प्रश्न और मैत्रेयजी द्वारा सृष्टि-क्रम-वर्णन

विदुरजी ने मैत्रेयजी से सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के बारे में प्रश्न किया, जिसका मैत्रेयजी ने विस्तार से वर्णन किया।

१०. कश्यप ऋषि और दिति की कथा

कश्यप ऋषि और दिति की कथा में उनके जीवन की घटनाओं और उनके द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख है।

११. दिति का गर्भाधारण

दिति का गर्भाधारण एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसमें उनके गर्भ से असुरों का जन्म हुआ।

१२. जय-विजय को सनकादि का शाप

जय और विजय को सनकादि ऋषियों द्वारा शाप मिला, जिससे वे तीन जन्मों तक असुरों के रूप में जन्मे।

१३. जय-विजय का स्वर्ग से पतन

जय और विजय का स्वर्ग से पतन हुआ और वे धरती पर असुरों के रूप में जन्मे।

१४. हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म

जय और विजय के रूप में हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म हुआ, जो शक्तिशाली असुर थे।

१५. वराहावतार – वराह भगवान का युद्ध एवं हिरण्याक्ष-वध

भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को पुनः जल से ऊपर उठाया।

१६. कर्दम ऋषि एवं देवहूति का वृत्तांत

कर्दम ऋषि और देवहूति की कथा में उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और उनके तप की महिमा का वर्णन है।

१७. कर्दम ऋषि की तपस्या एवं भगवान का वरदान

कर्दम ऋषि ने घोर तपस्या की और भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया।

१८. कर्दम और देवहूति का विवाह

कर्दम ऋषि का विवाह स्वायम्भुव मनु की पुत्री देवहूति से हुआ।

१९. श्रीकपिल भगवान का जन्म

कर्दम ऋषि और देवहूति के पुत्र के रूप में भगवान कपिल का जन्म हुआ।

२०. देवहूति का प्रश्न और भगवान कपिल द्वारा अपनी माता का समाधान

देवहूति ने भगवान कपिल से विभिन्न प्रश्न पूछे और कपिल भगवान ने अपनी माता के सभी प्रश्नों का उत्तर दिया।

२१. भगवान कपिल द्वारा भक्तियोग की महिमा का वर्णन

भगवान कपिल ने भक्तियोग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया, जिसमें भक्ति और ध्यान के माध्यम से आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताया गया।

२२. देह-गेह में आसक्त पुरुषों की अधोगति का वर्णन

भगवान कपिल ने देह-गेह (शरीर और घर) में आसक्त पुरुषों की अधोगति का वर्णन किया, जिसमें उनकी आत्मा की गिरावट और सांसारिक बंधनों का विस्तार से उल्लेख है।

२३. देवहूति को तत्त्वज्ञान एवं मोक्षपद की प्राप्ति

भगवान कपिल द्वारा प्रदान किए गए ज्ञान से देवहूति ने तत्त्वज्ञान प्राप्त किया और अंततः मोक्ष प्राप्त किया।

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