१. कलियुग के राजवंश और धर्मों का वर्णन
कलियुग में विभिन्न राजवंशों का उदय और पतन होता है। इस युग में धर्म का ह्रास होता है और अधर्म का प्रचलन बढ़ता है। कलियुग में मनुष्य स्वार्थ, लोभ, और अधर्म के मार्ग पर चलते हैं। धर्म के चारों स्तंभ- सत्य, तप, शौच, और दया- कमजोर हो जाते हैं और मनुष्य अपने कर्तव्यों से भटक जाते हैं। इस युग में सत्य का पालन कठिन हो जाता है और अधर्म का बोलबाला होता है।
२. कलियुग के दोषों से बचने का उपाय- नाम संकीर्तन
कलियुग में अधर्म और पाप के दोषों से बचने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय है – नाम संकीर्तन। भगवान के नाम का कीर्तन करना, उनकी महिमा का गान करना और भक्ति में लीन रहना, कलियुग के दोषों से मुक्ति दिलाता है। नाम संकीर्तन से मनुष्य के पाप धुल जाते हैं और उसे परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है। यह उपाय हर व्यक्ति के लिए सरल और सुलभ है, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो।
३. श्रीमद्भागवत के श्रवण के पांच फल, परीक्षित द्वारा श्रीशुकदेवजी की पूजा एवं परीक्षित की परमगति
श्रीमद्भागवत के श्रवण के पांच फल:
- ज्ञान की प्राप्ति: श्रीमद्भागवत का श्रवण करने से व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा का ज्ञान प्राप्त होता है।
- भक्ति की वृद्धि: यह ग्रंथ भक्ति की भावना को जागृत और मजबूत करता है।
- पापों का नाश: इसके श्रवण से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
- मन की शांति: श्रीमद्भागवत का श्रवण मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: इसके श्रवण से अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
परीक्षित द्वारा श्रीशुकदेवजी की पूजा और परीक्षित की परमगति:
परीक्षित महाराज ने श्रीशुकदेवजी की पूजा की और उनसे श्रीमद्भागवत का ज्ञान प्राप्त किया। शुकदेवजी ने उन्हें भगवान की लीलाओं और तत्वज्ञान का विस्तृत वर्णन सुनाया। इस ज्ञान के प्रभाव से परीक्षित महाराज ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी परमगति प्राप्त की और मोक्ष की प्राप्ति की। उन्होंने अपनी आत्मा को भगवान में विलीन कर लिया और जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो गए।