१. सद्भावना, मिश्रवासना और असद्वासना
सद्भावना, मिश्रवासना और असद्वासना तीन प्रकार की वासनाएँ हैं। सद्भावना वह भावना है जो सत्त्वगुण से उत्पन्न होती है और शांति, प्रेम एवं करुणा को बढ़ाती है। मिश्रवासना रजोगुण और तमोगुण का मिश्रण होती है, जो मनुष्य को भौतिक सुखों और दुखों में उलझाए रखती है। असद्वासना तमोगुण से उत्पन्न होती है और अज्ञान, क्रोध और नफरत को बढ़ावा देती है।
२. मन्वंतरों का वर्णन
मन्वंतर एक व्यापक कालखंड होता है जिसमें एक मनु का शासन होता है। हर मन्वंतर में विभिन्न ऋषि, देवता और दानव उत्पन्न होते हैं। वर्तमान मन्वंतर, जो सप्तम है, वैवस्वत मनु के नाम से जाना जाता है। इससे पहले छः मन्वंतर बीत चुके हैं और प्रत्येक में विभिन्न घटनाएँ और चरित्र सामने आए हैं।
३. ग्राह के द्वारा गजेन्द्र का पकड़ा जाना
गजेन्द्र, एक भक्त हाथी, एक दिन जलाशय में पानी पीने गया और एक ग्राह (मगरमच्छ) ने उसे पकड़ लिया। गजेन्द्र ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी लेकिन वह ग्राह के पकड़ से मुक्त नहीं हो सका।
४. गजेन्द्र के द्वारा भगवान् की स्तुति और उसका संकट से छूटना
गजेन्द्र ने अपने संकट में भगवान विष्णु की स्तुति की। उसकी स्तुति और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तुरंत आकर ग्राह का वध किया और गजेन्द्र को मुक्त किया।
५. गज और ग्राह का पूर्वचरित्र तथा उनका उद्धार
गज और ग्राह दोनों का पूर्व जन्म में भी गहरा संबंध था। ग्राह एक ऋषि के शाप के कारण मगरमच्छ बना और गज एक राजा था जिसने एक ब्राह्मण को सताया था। भगवान विष्णु के कृपा से दोनों का उद्धार हुआ और उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
६. समुद्र मन्थन की कथा
समुद्र मन्थन देवताओं और दानवों द्वारा अमृत प्राप्त करने के लिए किया गया था। मन्दार पर्वत को मथानी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर यह मन्थन किया गया। इसके परिणामस्वरूप अनेक रत्न और अद्भुत वस्तुएं प्रकट हुईं।
७. लक्ष्मीजी का प्राकट्य
समुद्र मन्थन के दौरान लक्ष्मीजी का प्राकट्य हुआ। वे देवताओं और दानवों के सामने प्रकट हुईं और देवताओं ने उन्हें अपने साथ स्वीकार किया। लक्ष्मीजी ने भगवान विष्णु को अपना वर दिया।
८. अमृत का प्रकट होना और मोहिनी अवतार
समुद्र मन्थन से अमृत प्रकट हुआ। देवताओं और दानवों में इसके वितरण को लेकर विवाद हुआ। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण करके अमृत का वितरण किया।
९. अमृत वितरण एवं देव-दानव युद्ध
मोहिनी अवतार में भगवान विष्णु ने चालाकी से अमृत को देवताओं में बांट दिया। दानवों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने युद्ध छेड़ दिया, लेकिन देवताओं ने उन्हें हरा दिया।
१०. मोहिनी रूप देखकर महादेवजी का मोहित होना
भगवान शिव ने मोहिनी रूप देखने की इच्छा व्यक्त की। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और महादेवजी उसे देखकर मोहित हो गए। इस घटना से महादेवजी ने मायारूप की असलियत समझी।
११. सप्तम मन्वन्तर के वामन भगवान् की कथा का प्रारम्भ एवं राजा बलि की स्वर्ग पर विजय
सप्तम मन्वंतर में वामन भगवान की कथा महत्वपूर्ण है। राजा बलि ने स्वर्ग पर विजय प्राप्त की और देवताओं को पराजित किया। उनके राज्य में सभी संतुष्ट और समृद्ध थे।
१२. कश्यपजी के द्वारा अदिति को पयोव्रत का उपदेश
कश्यप ऋषि ने अदिति को पयोव्रत करने का उपदेश दिया ताकि वे अपने पुत्रों को पुनः स्वर्ग प्राप्त करने में सहायता कर सकें। पयोव्रत के प्रभाव से अदिति ने वामन भगवान को प्रसन्न किया।
१३. भगवान् का प्रकट होकर अदिति को वर देना
अदिति की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वामन रूप में प्रकट होकर उन्हें वर दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और देवताओं को स्वर्ग वापस दिलाएंगे।
१४. यज्ञोपवीत का महत्त्व
वामन भगवान ने अदिति और कश्यप द्वारा यज्ञोपवीत धारण किया। यज्ञोपवीत धारण करने का महत्त्व धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठानों में विशेष होता है। यह ब्रह्मचर्य और संयम का प्रतीक है।
१५. वामन भगवान् द्वारा बलि से भिक्षा में तीन पग पृथ्वी मांगना
वामन भगवान ने राजा बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि मांगी। बलि ने यह भिक्षा सहर्ष दे दी, लेकिन वामन भगवान ने अपने विराट रूप में दो पग में ही स्वर्ग और पृथ्वी को नाप लिया।
१६. राजा बलि को शुक्राचार्य की शिक्षा
राजा बलि ने शुक्राचार्य से परामर्श किया, लेकिन भगवान वामन के विराट रूप को देखकर उन्होंने स्वयं को समर्पण कर दिया। बलि की यह शिक्षा भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति का उदाहरण है।
१७. भगवान् वामन द्वारा विराट रूप होकर दो ही पग से स्वर्ग और पृथ्वी को नाप लेना
भगवान वामन ने अपने विराट रूप में दो पग में ही स्वर्ग और पृथ्वी को नाप लिया। तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर समर्पित किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बनाया।
१८. बलि का आत्मसमर्पण और भगवान् का उस पर प्रसन्न होना
राजा बलि ने भगवान वामन के समक्ष आत्मसमर्पण किया। भगवान ने उनके समर्पण और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और पाताल लोक का राजा बनाया।
१९. भगवान् के मत्स्यावतार की कथा
भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार धारण करके प्रलय के समय वैवस्वत मनु को बचाया और वेदों को सुरक्षित रखा। मत्स्यावतार की कथा सृष्टि की रक्षा और धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक है।