भागवत पुराण: षष्ठम स्कन्ध विवरण

१. ध्यान प्रकरण, अर्चन प्रकरण और नाम प्रकरण

ध्यान प्रकरण, अर्चन प्रकरण और नाम प्रकरण हमारे जीवन में भक्ति और आध्यात्मिकता के महत्व को बताते हैं। ध्यान प्रकरण में भगवान के ध्यान और उनसे जुड़ने की विधियों का वर्णन है। अर्चन प्रकरण में भगवान की पूजा और अर्चना के तरीके बताए गए हैं। नाम प्रकरण में भगवान के नाम का जप और उसकी महिमा का वर्णन किया गया है।

२. अजामिलोपाख्यान

अजामिलोपाख्यान में एक ब्राह्मण अजामिल की कथा है, जिसने अपनी युवावस्था में पाप कर्म किए, लेकिन अंत समय में भगवान का नाम लेने से उसे मोक्ष प्राप्त हुआ। यह कथा बताती है कि भगवान के नाम का जप किस प्रकार पापों का नाश कर सकता है और मोक्ष दिला सकता है।

३. श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे महामंत्र का अर्थ

‘श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे’ महामंत्र का अर्थ है कि भगवान श्रीकृष्ण, जो गोविंद और मुरारी हैं, हमारी सभी बाधाओं को हरने वाले हैं। यह मंत्र भक्तों को श्रीकृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को प्रकट करने का माध्यम है।

४. दक्ष के द्वारा आदिनारायण की आराधना

दक्ष प्रजापति ने आदिनारायण भगवान की आराधना की थी। उनकी आराधना के फलस्वरूप उन्होंने कई सिद्धियाँ प्राप्त कीं और वे त्रैलोक्य में प्रतिष्ठित हुए। इस आराधना का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में बहुत विस्तृत रूप से मिलता है।

५. श्रीनारदजी के उपदेशों से दक्षपुत्रों की विरक्ति तथा श्रीनारदजी को दक्ष का शाप एवं दक्ष की साठ कन्याओं के वंश का उल्लेख

श्रीनारदजी ने दक्ष प्रजापति के पुत्रों को उपदेश देकर संसार की माया से विरक्त कर दिया था। इसके कारण दक्ष ने नारदजी को शाप दिया था। दक्ष की साठ कन्याओं का वंश भी बहुत प्रसिद्ध है, जिनका विवरण पुराणों में मिलता है।

६. बृहस्पति द्वारा देवताओं का त्याग और विश्वरूप का देवगुरुरूप में वरण

बृहस्पति ने एक बार देवताओं का त्याग कर दिया था, जिसके बाद देवताओं ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाया। विश्वरूप ने देवताओं को अनेकों उपदेश दिए और उनकी सहायता की।

७. नारायण कवच का वर्णन

नारायण कवच एक ऐसा रक्षा कवच है जो भगवान नारायण की कृपा से सभी प्रकार के संकटों से रक्षा करता है। इसका वर्णन श्रीमद्भागवत महापुराण में मिलता है।

८. विश्वरूप का वध, वृत्रासुर द्वारा देवताओं की हार और भगवान की प्रेरणा से देवताओं का दधीचि ऋषि के पास जाना

विश्वरूप का वध करने के बाद, देवताओं को वृत्रासुर से हार का सामना करना पड़ा। भगवान की प्रेरणा से देवता दधीचि ऋषि के पास गए और उनसे सहायता मांगी।

९. दधीचि ऋषि की अस्थियों से वज्र का निर्माण, देवताओं का वृत्रासुर से युद्ध तथा वृत्रासुर की भगवद् स्तुति एवं भगवद् प्राप्ति

दधीचि ऋषि ने अपनी अस्थियों का त्याग किया, जिससे वज्र का निर्माण हुआ। इस वज्र से देवताओं ने वृत्रासुर का वध किया। वृत्रासुर ने मरते समय भगवान की स्तुति की और भगवद् प्राप्ति की।

१०. वृत्रासुर का पूर्व चरित्र एवं चित्रकेतु का वृत्तान्त

वृत्रासुर के पूर्व जन्म का चरित्र और उसके चित्रकेतु के रूप में जीवन का वर्णन है। यह कथा उसके पूर्व जन्म के कर्मों और उसके प्रभाव को बताती है।

११. चार प्रकार के पुत्र

पुराणों में चार प्रकार के पुत्रों का वर्णन है: औद्योगिक, ज्ञानिक, तैजसिक और मानसिक। इन पुत्रों का महत्व और उनके गुण धर्म ग्रंथों में विस्तार से बताए गए हैं।

१२. अदिति और दिति की संतानों की तथा मरुद्गणों की उत्पत्ति एवं पुंसवनव्रत

अदिति और दिति की संतानें, जिनमें देवता और दानव शामिल हैं, की उत्पत्ति और उनकी कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। पुंसवनव्रत एक धार्मिक व्रत है, जिसका पालन अदिति ने किया था जिससे मरुद्गणों की उत्पत्ति हुई।

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