१. क्रियात्मक ज्ञान की आवश्यकता, चार पुरुषार्थ एवं सात शुद्धियां
क्रियात्मक ज्ञान का महत्व बताते हुए, चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) के महत्व और सात शुद्धियों (आहार, विचार, व्यवहार, क्रिया, भावना, संकल्प, दृष्टि) का वर्णन किया गया है।
२. स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन
स्वायम्भुव मनु की कन्याओं और उनके वंशजों की विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसमें उनके जीवन और उपलब्धियों का भी उल्लेख है।
३. भगवान शिव और दक्ष प्रजापति का मनोमालिन्य
भगवान शिव और दक्ष प्रजापति के बीच हुए मनोमालिन्य का वर्णन, जिसमें उनके बीच के विवाद और उसके परिणामों का विवरण दिया गया है।
४. सती का पिता के यज्ञोत्सव में जाने का आग्रह
सती द्वारा अपने पिता दक्ष के यज्ञोत्सव में जाने के लिए भगवान शिव से आग्रह करने की कथा।
५. सती का अग्नि-प्रवेश और दक्ष-यज्ञ-विध्वंस
सती के अग्नि-प्रवेश और उसके बाद दक्ष के यज्ञ के विध्वंस का वर्णन, जिसमें भगवान शिव के क्रोध और उसके परिणामों का विवरण है।
६. शारीर पञ्चायतन और इसके पांच प्रधान देव
शारीर पञ्चायतन की अवधारणा और इसके पांच प्रधान देवताओं का परिचय, जिनके माध्यम से शरीर और आत्मा के संबंध को समझाया गया है।
७. ध्रुवाख्यान
ध्रुव की कहानी, उसकी तपस्या और भगवान विष्णु से प्राप्त वरदान की कथा, जो उसकी दृढ़ निष्ठा और समर्पण को दर्शाती है।
८. अंग, वेन एवं पृथु-चरित्र
राजा अंग, वेन और पृथु के चरित्र का वर्णन, जिसमें उनके शासनकाल, उनके कार्य और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख है।
९. पृथु की वंश-परम्परा, रुद्र-गीता, एवं नारदजी का वहिराजा को उपदेश
राजा पृथु की वंश-परम्परा, रुद्र-गीता और नारदजी द्वारा प्रचेताओं को दिए गए उपदेशों का विवरण।
10. पुरञ्जनोपाख्यान
पुरञ्जन की कथा, जिसमें उसके जीवन, उसकी आत्मा की यात्रा और मोक्ष प्राप्ति की कहानी बताई गई है।
11. स्वामी विद्यारण्य पर माता गायत्री की कृपा का प्रसंग
स्वामी विद्यारण्य पर माता गायत्री की कृपा का प्रसंग, जिसमें उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और उनके आध्यात्मिक अनुभवों का वर्णन है।
12. प्रचेताओं को भगवान का वरदान एवं नारदजी का उपदेश
प्रचेताओं को भगवान द्वारा दिए गए वरदान और नारदजी के उपदेश, जिसमें उनके जीवन की दिशा और उद्देश्य के बारे में मार्गदर्शन दिया गया है।